जूते पॉलिश करने वाला एक लड़का | Baccho Ki Hindi Kahani: एक सज्जन रेलवे स्टेशन पर गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे। तभी एक छोटे जूते पॉलिश करने वाले लड़के ने उनके पास आकर विनम्रता से पूछा, “साहब, बूट पॉलिश कर दूँ?”
जूते पॉलिश करने वाले लड़के की दयनीय और मेहनत से भरी सूरत देखकर सज्जन ने अपने जूते उसकी ओर बढ़ा दिए और कहा, “लो, पर ठीक से चमकाना।”
लड़के ने जूते पॉलिश करने का काम तो शुरू किया, उन्होंने देखा की जूते पॉलिश करने वाला वह छोटा लड़का उदास और थका हुआ था, उसमें स्फूर्ति और उत्साह नहीं था। सज्जन ने देखा और चिढ़कर बोले, “कैसे ढीले-ढीले काम कर रहे हो? जल्दी-जल्दी हाथ चलाओ बच्चे!”
आज की कहानी का नाम है: जूते पॉलिश करने वाला एक लड़का | Baccho Ki Hindi Kahani
जूते पॉलिश करने वाला लड़का चुपचाप चुपचाप उनकी तरफ देखने लगा और कुछ नहीं बोला । तभी दूसरा जूते पॉलिश करने वाला एक और लड़का उनके पास आया, उसने पहले लड़के को अलग कर दिया और स्वयं तेज़ी से काम में जुट गया। पहला लड़का गूँगे की तरह एक ओर खड़ा रहा। दूसरे ने जूते चमका दिए।
सज्जन ने सोचा, ‘अब इन दोनों में पैसे को लेकर झगड़ा होगा या मारपीट होगी।’ फिर उन्होंने विचार किया कि ‘जिसने काम किया है, उसे ही पैसे मिलने चाहिए।’ इसलिए उन्होंने बाद में आने वाले लड़के को पैसे दे दिए।
लड़के ने पैसे ले तो लिए, लेकिन उन्हें पहले वाले लड़के की हथेली पर रख दिया। उसने प्रेम से उसकी पीठ थपथपायी और मुस्कुराते हुए चला गया।
सज्जन चकित नेत्रों से यह दृश्य देख रहे थे। उन्होंने तुरंत लड़के को वापस बुलाया और पूछा, “यह क्या चक्कर है?”
लड़का उत्तर दिया, “साहब, यह तीन महीने पहले एक चलती ट्रेन से गिर गया था। इसके हाथ-पैर में गंभीर चोटें आई थीं। ईश्वर की कृपा से बच गया, नहीं तो इसकी वृद्धा माँ और बहनों का क्या होता? यह बहुत स्वाभिमानी है, भीख नहीं मांग सकता…”
फिर थोड़ी रुकावट के बाद वह बोला, “साहब, यहाँ जूते पॉलिश करने वाले लड़कों का एक समूह है, और उनमें एक देवता जैसे प्यारे चाचाजी हैं, जिन्हें सब ‘टॉम चाचा’ कहकर पुकारते हैं। वे सत्संग में जाते हैं और हमें भी सत्संग की बातें बताते रहते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि ‘हमारे साथी को अब पहले की तरह स्फूर्ति से काम करने की क्षमता नहीं रही, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम इसे अकेला छोड़ दें। यह ईश्वर का अवसर है कि हम सक्रिय हित, त्याग, स्नेह, सहानुभूति और एकता का प्रदर्शन करें। जैसे भिन्न-भिन्न अंग एक ही शरीर का हिस्सा होते हैं, वैसे ही हम सभी अलग-अलग दिखते हुए भी एक ही आत्मा के हिस्से हैं। हम सब एक हैं।’
स्टेशन पर रहने वाले हम सब साथियों ने मिलकर यह तय किया कि हम अपनी एक जोड़ी जूते पॉलिश करने की आय प्रतिदिन इस जूते पॉलिश करने वाले हमारे साथी बच्चे को देंगे और जरूरत पड़ने पर इसके काम में सहायता भी करेंगे।”
जूते पॉलिश करने वाले लड़कों के इस दल की आपसी प्रेम, सहयोग, एकता, और मानवता की ऊँचाई देखकर सज्जन चकित रह गए और खुशी से जूते पॉलिश करने वाले लड़के की पीठ थपथपाई। उन्होंने सोचा, शायद इंसानियत अभी भी ज़िंदा है।
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